Tuesday 10 March 2015


                                    एक कारण दो....




लोगों के सामने हँसते- खिलखिलाते सर दर्द को मुट्ठी में दबा कर बैठी थी, वापस लौटी तो एक लिफाफा इंतज़ार में था. उस लिफाफे के इंतज़ार में मैं सुबह से थी, जानती थी,  इंट्यूशन हो गया था शायद की अच्छी खबर नहीं होगी लेकिन उम्मीद तो कंधे पे सवार रहती है न सो मुस्कुरा के लिफाफा खोला, कारण बताओ नोटिस था. कितने अजीब से होते हैं ये नोटिस, कारण बताओ, मैं अभी तक उन शब्दों में प्यार, अपनापन, हक़ जाने क्या-क्या तलाश रही हूँ लेकिन सब कुछ तो तिर्यक रेखा पे जा बैठा है. ये भी होना ही था.  इतने मसाइल हैं चलो एक और सही.  आंसू और ठहाके दोनों अन्दर की तरफ बहते रहते हैं जब मैं उस कारण बताओ नोटिस का जवाब लिखने की सोचती हूँ, कोई जवाब नहीं सूझता, इस नोटिस भेजने वाले पर मुझे बेहद यकीन है हालाँकि कोई वजह नहीं मेरे पास अपने इस यकीन की और न मैंने कभी परवाह की किसी वजह की. लोगों ने मुझे वजहें दी यकीन न करने की लेकिन तब मैंने बस मुस्कुराना ठीक समझा. हाथों में वो कागज़ ले कर देखती हूँ अजीब सी खुशबु आती है, और मैं हँस पड़ती हूँ खुद के बनाये इस भरम पर जिसे मैं बड़ी शिद्दत से बना के रखती हूँ. जीने के लिए भरम जरुरी होते हैं क्या? मुझे तो भरम हो रखा है जीने का.
                                                                                           क्यूँ नहीं मैं बाकी सबकी तरह हो सकती? अरे एक कारण बताओ नोटिस ही तो है अच्छा सा जवाब ड्राफ्ट करो, भेजो और चैन से सो जाओ. लेकिन ऐसा कर नहीं सकती , ऐसा हो नहीं सकता, एक छोटी सी बात में भी जाने क्या क्या तलाशती रहती हूँ, सब कहते हैं ऐसे मौकों पर फैक्ट्स एंड फिगर्स में बात करनी चाहिए जो मेरे बस का नहीं सो सच -झूठ से परे एक लाइन का जवाब भेज दिया. अब तो जो होगा सुबह ही होगा और इस रात की सुबह कभी तो होगी ही न.

 जिस दिन तुम मेरा दामन छोडो उस दिन इस उम्मीद की उँगली पकड जरुर ही अपने साथ ले जाना.




ईश्वर को भी लास्ट वार्निंग दे दी है सरप्राइज़ पार्टी के लिए....





उसने कहा था जब बिना लाग-लपेट के, बिना शब्दों को घुमाए  बोलती हूँ तो उसे सुनना अच्छा लगता है .............यकीन है मुझे इस बात पर




अब की बार जब दूँगी आवाज़
तो
जरुर ही रख देना कानो में मेरे
किसी अँधेरे कोने में
बचा कर रखा हुआ एक बहाना
नीली पड़ने के बावजूद भी
हिलने की हिम्मत रखने वाली
उँगलियों को बींध देना
ठंडी सवालिया नज़रों से
 नहीं है मेरे पास
एक भी कारण
की
संतुष्ट कर सकू तुम्हे
और बचा ले जाऊं
कुछ जिंदा रह गई चीज़ों के अवशेष,

तुम्हारे पास बचा हो शायद कोई बहाना
दस्तकों को सुनने या  अनसुना करने का
 ,



   

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