Friday 2 January 2015

मेरे तुम्हारे बीच
रहस्य सी
तो कभी
खिलखिलाती सी
मुस्कराहट की वजह
एक शब्द या नाम नहीं
इक दुआ थी
जिसे पढ़ा मैंने और फूंक तुमने मारी थी
अब इसे
तुम्हारे गले से उतार
मैंने बाँधा है उस सूनी बाँह पर
जहाँ कोई भी
नमकीन या मीठे से
टीसते बोसे का
निशान नहीं।

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