Sunday 14 December 2014


तुम्हारे सीने पे रख ख्वाब उठाया तो रेशम-रेशम फिसलती सांस आधी आँखों में अटक कर रह गई.





इस सर्द रात दालान की सीढ़ियों पर
तुम्हारे साथ बैठना
जगती सुबह जब उठने लगेगा कुहरा
तो
बचे रह जायेंगे
मेरी गर्दन के इर्द गिर्द इत्र से तुम्हारे शब्द
















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अलाव के सामने
तुम्हारे काँधे से लगी सुनती हूँ तुम्हे
घुल जाते हैं मीठे खजूर से तुम्हारे शब्द
पहुँचती है सिर्फ तुम्हारी आवाज़ मुझ तक
गहरी धीमी आवाज़
तुम देखते हो मेरे हिलते कुंडल को
और
मैं देखती हूँ तुम्हे
ये आज की ही बात है
या
है रोज़ की

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