Friday 28 November 2014


बीते हुए सालों की धसका सी एक याद







तुम्हारी तरफ कॉफ़ी का मग बढाती हूँ और तुम बिना किताब पर से निगाह हटाये हाथ आगे बढ़ा देते हो । मैं मुस्कराहट होंठों में दबाये दो कदम पीछे हट जाती हूँ। हवा में तलाशते तुम्हारे हाथ से जब कुछ नहीं छूता तब तुम्हारी नज़रें उठ जाती हैं मेरी आवाज़ के पीछे पीछे। मेरे चेहरे पे मुस्कराहट देख तुम झल्ला जाते हो, मुझे अपनी पहुँच में ना पा कर या मुझे देखने के लिए तुम्हे अपनी नज़रें उठानी पड़ी इसलिए।

तुम्हे भी आदत है और मुझे भी बिना एक दूसरे की आँखों की ज़द में आये एक दूसरे को देखने की।

आज जब उठ आई हूँ तुम्हारे पास से तब ये अहसास हुआ कि हम कभी अगल बगल क्यों नहीं बैठते .




ज्यादा रुचता है हमें एक दूजे केे सामने बैठ कर एक दूजे को पढ़ना।



तुम यूँ ही रहना हमेशा .

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