सारी दुआओं को ताबीज़ में बाँध
माथे पर भभूत मल
बैठी है वो आखिरी द्वार पर
बिसात बिछा
दाँव पर है
उसके सारे भ्रम
और उनसे मिलते जुलते यकीन
गिरते हर पासे पर
ईश्वर की मुस्कराहट देख
रख लिया है उसने
ख़्वाबों को आँखों से निकाल
सोच में
अटका लिए हैं कहकहे हलक में
अंगूठे की पीठ पर उलझी रेखाओं में
एक नाम
सुलझाने की
चाहना के साथ।
माथे पर भभूत मल
बैठी है वो आखिरी द्वार पर
बिसात बिछा
दाँव पर है
उसके सारे भ्रम
और उनसे मिलते जुलते यकीन
गिरते हर पासे पर
ईश्वर की मुस्कराहट देख
रख लिया है उसने
ख़्वाबों को आँखों से निकाल
सोच में
अटका लिए हैं कहकहे हलक में
अंगूठे की पीठ पर उलझी रेखाओं में
एक नाम
सुलझाने की
चाहना के साथ।
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