Friday 28 November 2014

तुम्हे याद न करने की सारी जुगत लगाती हूँ
बेतरह हँसती हूँ इधर-उधर से इक्कठे किये छोटे छोटे टुकड़ों पर

इक्कड़ दुक्कड़ खेलती हूँ
एक टांग पर कूदते हुए
शायद किसी जादू से
जिस अगले खाने में पहुँचूँ वो तुम्हारा मन हो

एक आँख मीच कंचे पर जब लगाऊँ निशाना
तो वो उछलता हुआ जा लगे 
धूप सेंकती तुम्हारी पीठ पर
और
तुम ना चाहते हुए भी मेरी तरफ किसी जादू के जोर से घूम जाओ

जादू होने की उम्मीद होना अच्छी बात है
एक दिन सब ठीक हो जायेगा इस उम्मीद की उम्मीद होना भी अच्छी बात है

सारे जादूगर निकालते हैं कान से पकड़ खरगोश को टोपी से
उस खरगोश को वापस टोपी में ग़ुम करना सिर्फ तुम्हे आता है।

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