Tuesday 16 September 2014

omar

arabic/ hebrew  भाषा में बनी ओमर एक प्रेम कहानी है, फिलिस्तीन और इजराइल के बीच  संघर्ष की भी कहानी है , दोनों ही कहानियाँ बखूबी साथ चलती हैं .  पहली कहानी है बचपन के तीन दोस्त , ओमर , तरीक और अमजद की  , तीनो  दोस्त फिलिस्तीन के स्वयंभू स्वतन्त्रता सेनानी के एक ग्रुप का हिस्सा  हैं जिनका लीडर तारीक है . तीनो दोस्त फिलिस्तीन की आज़ादी के प्रति अपना समर्पण दिखाने के लिए एक इजराइली सैनिक की हत्या का प्लान बनाते हैं, गोली अमजद चलाता है,सैनिक मर जाता हैऔर उसकी हत्या के आरोप में ओमर पकड़ा जाता है. इजराइली अधिकारी  रामी ओमर को अपना  इनफॉर्मर बनने की शर्त पर रिहा करता है. रामी तारीक को पकड़ना चाहता है और इस काम में वो ओमर की मदद चाहता है , इनकार करने की सूरत में रामी ओमर को नादिया ,( जो की तारीक की  बहन है और जिसे ओमर बेहद प्यार करता है ) ,की ज़िन्दगी बर्बाद करने की धमकी देता है. ओमर अपनी ज़िन्दगी बहुत सारे फैसले नादिया को ध्यान में रख कर करता है.फिल्म ट्रैजिक है और किसी भी रिश्ते से ज्यादा दोस्ती को ध्यान में रख कर बुनी गई है.
                                                                                   दूसरी कहानी है ओमर और नादिया के प्रेम की. कहानी है प्रेम करने वालों के बीच शक पैदा करने वाले उन्ही के दोस्त की.
                               फिल्म की शुरुआत में ओमर फिलिस्तीन और इजराइल को अलग करती ऊंची  दीवार पर आसानी से चढ़ जाता है, उसे गोली लगने ही वाली होती है की वो एक झटके से रस्सी का सहारा ले दूसरी तरफ उतर जाता है . अपनी प्रेमिका नादिया से मिलने की उमंग में वो अपनी  हथेलियों पर लग आई खरोचों को भी अनदेखा कर देता है. उसका इस तरह दीवार पर चढ़ना  मुझे तब तक सहज लगता है जब तक की फिल्म के आखिर के एक दृश्य में ओमर बहुत कोशिशों के बाद  उस दीवार पर किसी की मदद से ही  चढ़ पाता है , अपनी इस असाहयता  पर ओमर का रोना मुझे स्तब्ध कर देता है  और मैं ओमर के साथ रोती हूँ की उसने अपने प्रेम को खो दिया है,  प्रेयसी से मिलने की बैचेनी की जगह उदासी ने ले ली है.  अब कोई नहीं उस दीवार के दूसरी तरफ जिससे मिलने की उत्कंठा उससे एक बेहद मुश्किल काम आसानी से करा देती थी. मैं जीती हूँ उन छोटे-छोटे पलो को ओमर और नादिया के साथ जिनसे उनकी ये प्रेम कहानी बुनी गई है. चाय के कप के नीचे रख कर दिए जाने वाले प्रेम पत्र, ख़त देते समय नादिया की भोली मुस्कराहट और उसके साथ मैं भी हज़ार सपने बुन लेती हूँ. ओमर नादिया से जब भी मिलता है उसे ख़त देता है,कितना अलग सा ख्याल है न जब मिले तब  उस वक़्त की और आने वाले वक़्त की बातें कर ली लेकिन जो वक़्त तुम्हारे बिना गुज़रा उसका हिसाब ?
                                                                                         जेल से छूटने के बाद ओमर देखता है की उसका बचपन का दोस्त अमजद नादिया से मिलने उसके स्कूल जाता है, नादिया अमजद  को  ख़त देती है. ऐसे ख़त तो ओमर और नादिया का हिस्सा थे. ओमर के साथ-साथ मैं भी नादिया पर शक करती हूँ कि वो बदल गई है . नादिया ओमर पर शक करती है , वो कहती है की लोग कह रहे हैं की ओमर इनफॉर्मर बन गया है वरना वो जेल से इतनी जल्दी कैसे छूट गया. इस बात का ओमर के पास कोई जवाब नहीं.  फिल्म के नायक ओमर के रूप में  बाकरी जिनकी ये पहली फिल्म है अपनी आँखों और चेहरे के हाव भाव से पूरी तरह कन्विंस करते हैं.
               मोहब्बत और जंग में सब जायज़ है इस बात को अमजद ने पूरी तरह जिया है. अमजद, ओमर और तारीक  से कहता है की वो और नादिया एक दूसरे से  प्यार करतें हैं और नादिया प्रैगनेंट है , ओमर और तारीक अमजद पर यकीन करते हैं , रिश्ते और मोहब्बत से ज्यादा दोस्ती पर यकीन. तारीक को नादिया से कुछ कहने या पूछने का मौका नहीं मिलता और ओमर अपने महबूब से ज्यादा अपनी समझ और दोस्त पर यकीन करता है. ये फिल्म हमें ये भी बताती है की हमेशा सब कुछ एक जैसा नहीं रहता, बचपन के दोस्त भी नहीं. ओमर हर तरह की मदद करता है अमजद की शादी नादिया से कराने में. शादी के लिए हाँ कहने से पहले नादिया ओमर से बात करना चाहती है वो नहीं सुनता, उसे ख़त देना चाहती है वो नहीं लेता
                          ओमर कहानी है प्यार, धोखे, संघर्ष, उम्मीद, यकीन, दोस्ती और सैक्रिफाइस की.
                                                                                                                              ओमर कुछ समय बाद जाता है अमजद से मिलने, अमजद तो नहीं मिलता ओमर को घर पर नादिया और उसके दो बच्चे मिलते हैं.
                                                                     ओमर के रूप में एडम बाकरी अपने  सहज अभिनय से मुझमे एक भरोसा एक उम्मीद जगाते हैं और मैं फिल्म देखने के लिए उनकी उंगली थाम लेती हूँ. बाकरी बेहद सरल  ढंग से ओमर का जीवन मुझे दिखाते हैं. 
                                                                                                           जब ओमर  अमजद के गले पे चाकू रखता  है  तो नादिया के लिए उस की तड़प दिखती है फिर क्यूँ वो नादिया से ज्यादा अमजद पर भरोसा करना चुनता  है ?
                                                                                                    नादिया से मिलने पर ओमर उससे उसके बड़े बेटे की उम्र पूछता है, नादिया कहती है की उसके बेटे का जन्म शादी के एक साल तीन महीने बाद हुआ था , नादिया ओमर से माफ़ी मांगती है की उसने ओमर पर शक किया.
                                                                              एक पल सिर्फ एक पल में ओमर समझ जाता है अमजद के दिए धोखे को और अब तक चमकती उसकी आँखें बुझने लगती हैं. इसके बाद की फिल्म देख कर लगता है की ओमर अमजद से बदला लेगा . निर्देशक Hany abu-assad ने ये हम दर्शकों की समझ पर छोड़ दिया है की ओमर ने अमजद का क़त्ल किया या नहीं. मेरी समझ में ओमर अमजद को नहीं मारता क्यूंकि अमजद के मरने से नादिया की ज़िन्दगी पर फर्क पड़ेगा. 
                            फिल्म के अंत में ओमर ये भी सुनिश्चित करता है की भविष्य में भी कोई अमजद को परेशान न कर सके. ओमर के हाथ में रिवाल्वर है और सामने इजराइली ऑफिसर रामी और उसके साथ के दो लोग हैं. गोली की आवाज़ आती है फिर स्क्रीन पर अँधेरा छा जाता है. ओमर ने रामी को मार कर आत्महत्या जैसा ही काम किया है. रामी के साथ आये ऑफिसर किसी भी हालत में ओमर को जिंदा नहीं छोड़ेंगे. और इस तरह ओमर धोखे की वो कहानी ख़त्म कर देता है जिसे अमजद ने शुरू किया था.


                                                                  ओमर एक ऐसी मालूम सी  कहानी है जिसे शायद हम सब जानते हैं की इस कहानी में ऐसा होगा लेकिन निर्देशक के साथ साथ एक्टर्स ने इसे आहिस्ता-आहिस्ता सांस लेते हुए सुनाया है और यहीं ये फिल्म अलग सी और ख़ास बन जाती है. एक ऐसी ट्रेजिक लव स्टोरी जिसमे हम उसके दुखद अंत को याद नहीं करते बल्कि ओमर-नादिया के प्रेम को याद रखते हैं.















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