Tuesday 16 September 2014





मैं एक रेत के ऊंचे से टीले पर बिना किसी दिशा की तरफ मुंह किये बैठना चाहती हूँ, चाहती हूँ हवा भी कुछ देर के लिए वहीँ बैठी रहे मेरे पास और जब लौटे तो मेरे लौटने के तमाम निशान भी लेती जाए.



मैं किसी अनजान शहर की किसी व्यस्त सी सड़क पर टहलना चाहती हूँ जहाँ एक भी चेहरा मुझे न पहचानता हो लेकिन मैं उन सारे चेहरों की तरफ देख कर मुस्कुराना चाहती हूँ.


बेटे की तरफ देखती हूँ वो सो रहा है मैं उसे उठाना नहीं चाहती चाहे सारे ही जरुरी काम क्यूँ न पीछे छूट जाएँ, आज सुबह बड़ा जी किया की मैं भी ऐसे ही किसी के भरोसे गहरी नींद सो जाऊं की वक़्त होने पर वो मुझे उठा देगा .


अपने महबूब से मिलने के लाख जतन करती हूँ लेकिन हर बार सारी कोशिशें "फिर कभी" के टैग के साथ मुल्तवी कर दी जाती हैं . दुनिया के सारे जरुरी कामो की लिस्ट पर टिक करते हुए मेरी सबसे जरुरी चाह कहीं पीछे रह जाती है, मैं अपने भरोसे की उंगली नहीं छोडती की एक दिन महबूब के गले जरुर लगूंगी.


एक दिन वो सारे सच बोल देना चाहती हूँ जो मेरे गले में अटके पड़े हैं और देखना चाहती हूँ की कितनी इमारते भरभरा कर गिरती हैं और तब मैं इस और उस दुनिया की सबसे प्यारी मुस्कराहट मुस्कुराना चाहती हूँ.










उन सारी बातों पर जिनपे बस नहीं चलता या यूँ कहना चाहिए की कभी बस चलाने की कोशिश नहीं की , हर किसी को धता बता कर खुद को भी , एक बार बस चलाने की कोशिश करना चाहती हूँ,नतीजो की परवाह किये बिना. हालांकि हम बिना नतीजा जाने परखे कोई काम करना नहीं चाहते और न ही करते हैं , एक बार बस एक बार मैं नतीजों को मोड़ कर गद्दे के नीचे छुपा देना चाहती हूँ.






बहुत सारे सवालों को गले में जलते कोयलों में फूंक देना चाहती हूँ और वो बोलना चाहती हूँ जो हर वक़्त मेरी पीठ पर बेताल सा सवार रहता है.






कानों पे बंद मार अपने चेहरे के सारे मुखौटे न्याग्रा फाल्स में उछाल देना चाहती हूँ, किसी जहाज़ में समंदर की किसी अंतहीन यात्रा पर नहीं निकलना चाहती न ही किसी अरण्य में खोना चाहती हूँ, इसी दुनिया में बहुत सारे लोगों के बीच रहना चाहती हूँ.










अपनी जगह करीने से रखी हुई हर चीज़ , हर बात को बेतरतीबी के रंग में रंग देना चाहती हूँ सुकून के लिए.

















लिस्ट बहुत लम्बी है और एक दिन अपने हर जरुरी काम को पीछे रख के इस पूरी लिस्ट पर टिक लगाना है , इस टिक लगाने की उम्मीद में बाकी सारे काम मुस्तैदी से पूरे करते हुए जिए जा रही हूँ.










( painting by kamal rao)

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