Friday 19 September 2014

17 साल हो गए शादी को लेकिन माँ की नज़र में आज भी वही सिलबिल्ली सी लड़की हूँ जो खाना बनाने में ना-नुकुर करती है. पति के शहर से बाहर जाने पर माँ जरुर फोन करती है ये पूछने के लिए की खाना क्या बनाया है. माँ अक्सर मुझसे सब्जियों के भाव भी पूछती हैं, मैं भी उन्हें बताने के लिए ही सारी सब्जियों के भाव पता रखती हूँ. उन्हें ये भी पता है की मैं बिना सब्जियों के भाव पता किये खरीदती हूँ, आज माँ ने फिर फोन किया की
 "खाना क्या बनाया है"
"आपको क्या लगता है की मैं खाना नहीं बनाती?"
"हाँ! ऐसा ही लगता है"
"पिज़्ज़ा, पास्ता बनाया है या रोटी सब्जी"?
"रोटी सब्जी" मैंने बड़े धैर्य से जवाब दिया.
"अच्छा तुम्हारी तरफ टमाटर क्या भाव हैं" माँ ने बड़ी सहजता से पूछा.
"माँ , एक बात बताइए, मैं सब्जी वाले के पास जाऊं और उससे पूछूं ---भैया टमाटर क्या भाव हैं?, वो कहेगा----100 रुपये किलो, मैं कहूँगी --haaaaawwwwww इतने महंगे! अच्छा  एक किलो दे दो.
"तुम इतने महंगे टमाटर खरीदोगी?" , माँ ने मुझे बीच में टोकते हुए कहा.
"आप पूरी बात तो सुनिए, हाँ तो मैं गई सब्जी वाले के पास और मैंने उससे टमाटर का भाव पूछा, ठीक!, अब मैं

दुबारा गई सब्जी वाले के पास और कहा की भैया एक किलो टमाटर दे दो, अब आप ही बताइए माँ इन दोनों

सेंटेंस में सिर्फ "haaaaaaawwwwwwwww इतने महंगे!" इसी बात का तो तो फर्क है न .
" बड़ी सुन्दर लग रही है अपनी माँ से ऐसे बात करते हुए "
और माँ ने फोन रख दिया.
एक-दो दिन में फिर फोन करेंगी माँ, आखिर माँ है ना!

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