Friday 19 September 2014

खाना बनाते वक़्त अपने 16 साल के  बेटे से बतियाना मजेदार अनुभव होता है. स्कूल से आते ही वो रसोई में मेरे पास खड़ा हो दिन भर की रामकहानी सुना डालता है. इस तरह मैं भी एक बार फिर से  अपने स्कूली दिनों को  जी लेती हूँ . जब वो बताता है की किस दोस्त के साथ क्या बदमाशी  की, आज किस बात पे डांट पड़ी तो लगता है उसके साथ ही स्कूल में मैं भी दिन बिता के आई हूँ. उस दिन भी कुछ ऐसा ही चल रहा था, मैं खाना बना रही थी और वो बातें बताने में मशगूल था. उसकी बातों को सुनते , जवाब देते मैंने हींग का डब्बा उठाया और उसकी नाक के आगे रख दिया. बातों में मशगूल बेटे ने जोर की सांस खीची और क्या है ये कहता हुआ उचल पड़ा. मैंने मुकुराते हुए कहा "हींग". " पानी दो माँ", "आक्थू", "हद्द है", "आप भी न माँ" जैसे वाक्यों का लम्बा सिलसिला चला. मैं हँसते -हँसते दोहरी.
                         बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, सपूत का अक्सर कहना मैं आपका एडवांस वर्ज़न हूँ मैं भूल सा गई थी की आज उसने याद दिला दिया.  शाम को बेहद व्यस्त सा दिखता हुआ मेरे पास आया
"माँ ,सुनो तो"
मैंने  लैपटॉप पे निगाहें जमाये-जमाये कहा "बोलो", लेकिन तब तक तो देर हो चुकी थी. बेटा  अपनी पसीने से भीगी रिस्ट वाच का बैंड मेरी नाक के आगे रख चुका  था. अब हंसने की बारी उसकी थी और नाक-भौं सिकोड़ने   की मेरी.

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