Sunday 13 July 2014

मिले थे कुछ जवाब
अर्थहीन शब्दों की आड़
लिए हुए,

ढूंढें न मिला
एक भी सिरा
उँगलियों पर गिने जा सकने
वाले सवालों का,...

इन सवालों के बीच ही
छुपी थी कहीं
एक शिकायत
मुझे कुतरती हुई सी,

दिख जाए तो बेहद ख़ास
नज़र चूक जाये तो
न जानी न कही

मुझे तो सिर्फ अपनी दूरी का अंदाजा लेना था की कहाँ से दीवार पर मारी हुई गेंद वापस आती है-----मेरी मुठ्ठियों में

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