Sunday 20 July 2014

गढ़ लेना यथार्थ
सपनो की दुनिया में,

रख आना एक दिया
जलने की प्रतीक्षा में
सच और ख्वाब की मुडती सी गली में,

स्मृतियों को गलबहियां डाल
मनुहार करना न लौटने की,

देखना मुस्कुराहटों का
टूट-टूट कर आना,

लफ़्ज़ों के साए पकड़ना
खुलती मुट्ठियों से,

उसके खामोश होने से पहले तुम्हे होना चाहिए था.

Sunday 13 July 2014

मिले थे कुछ जवाब
अर्थहीन शब्दों की आड़
लिए हुए,

ढूंढें न मिला
एक भी सिरा
उँगलियों पर गिने जा सकने
वाले सवालों का,...

इन सवालों के बीच ही
छुपी थी कहीं
एक शिकायत
मुझे कुतरती हुई सी,

दिख जाए तो बेहद ख़ास
नज़र चूक जाये तो
न जानी न कही

मुझे तो सिर्फ अपनी दूरी का अंदाजा लेना था की कहाँ से दीवार पर मारी हुई गेंद वापस आती है-----मेरी मुठ्ठियों में

Monday 7 July 2014

रख छोड़े हैं कुछ अनखुले से शब्द
बंद मुट्ठी में,
आँखें बंद करू तो
फूंक मार
इन्द्रधनुष फैला दो हथेलियों पर,





लेकिन तुम भी क्या करोगे ------ तुम तुम हो।
भाग्य के हिस्से
एक सुकून भरी सांस
जो
ली जा सके
खिल-खिल करती हंसी के साथ आँगन में बैठ,
एक लहलहाता हुआ गीत
जो लिखा जा सके
सौंधी महक पर

प्रेम के हिस्से
मैं

जानां
तुमने क्या चुना