Friday 20 June 2014

तारों के ठन्डे होने वाले दिन ,
उतरी धूप के साथ,
सपनो को बटोर
लौटना होता है
बंद खिडकियों
और
थक कर बैठी हवा के बीच ,
जल उठते हैं
अनगिनत सूरज
जब
डबडबाते पैरों के निशान
गुम जाते हैं आहिस्ता ,

तय कर दिया है
ख़ामोशी की गहराई को
हमेशा के लगाव का पैमाना !

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