Wednesday 12 March 2014

अकथ कविता -कहानी की जमीन पर
उग आई थी ,
जो
एक सीधी और सच्ची बात ,
बहुत छोटे से पल के भी सौवें हिस्से में
तुम्हारी आँखों से गुजरते हुए
लिपट कर रह गई जो   मेरी उँगलियों से
कुछ मुड़ सी गई है ,

आधी सी चुप्पी में सुनने से रीती रह गई
वो सारी  लम्बी दोपहरें
ठहर गई हैं किन्ही दो टुकड़ा आँखों पे ,

किसी बेपहर के दिन
शब्दों की कलाई पर
नीली स्याही से  गुदे
एक अक्षर के इतिहास को
सीधा कर दो

1 comment:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.


    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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