Sunday 26 January 2014

नहीं दर्ज जो ,
किसी काल के फलक पर ,
वह
सर्द सूनापन
झांकता है ,
उँगलियों की ओट लिए
शब्दों की दरारों से ,
कर जाता है मन प्राण शिथिल
आश्वस्त सा एक मौन ,
रचे गए किरदार
भोगी हुई त्रासदियों के साथ
तुम्हारे स्वप्न के
विस्तार में
एक स्वप्न हूँ
जो
संभव न हो सका
 तुम्हारे  ह्रदय में

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