Wednesday 1 January 2014

अपने हिस्से की त्रिज्या पर चलती ,
घूमती हूँ वृत्त की परिधि पर ,
हैरान हो उठती हूँ
तालू में अटकी अपनी ही चीख से
ऐसी कोई आवाज़
मेरे
अन्दर भी रहा करती है ?

2 comments:

  1. भव्य और अद्भुद ... शायद हर इंसान जीवन के किसी मोड़ पर से यहाँ पहुँच रुक जाता हो ...

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