Monday 30 December 2013

गीली रेत पर पड़े
अपने पैरों के निशाँ
वापस लौटा लो ईश्वर ,
मुझे रखना है
माथे ,
प्रेम को

4 comments:

  1. जैसे ही गीली मिटटी स्पर्शित होता है...
    मेरी साड़ी वक्रताएं सीढ़ी और गोल हो...
    तुम्हारे माथे की बिंदी बन जाती है...

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  2. बहुत सुन्दर

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