Friday 23 August 2013

कितने सारे खेल
शब्दों के
एक दुसरे को मात देते
हँसते-खिलखिलाते
आँखों से सरक,मुस्कुराहटों पर टिकते-फिसलते
व्यंग से बोझिल होते,कपडे झाड फिर खड़े होते
कितने सारे खेल शब्दों के
मेरे तुम्हारे बीच!!!!!!!!!!!!!!

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